उत्तर प्रदेश में दूसरे चरण के चुनाव में जिन अहम सीटों पर लोगों की निगाहें लगी हैं उनमें रामपुर जिले की भी 5 सीटें हैं. रामपुर और आसपास के इलाके में असर रखने वाले आज़म खान जेल में हैं क्या इसका फायदा विरोधियों को मिलेगा.रामपुर शहर सीट से लगातार नौ बार से विधायक रहे रामपुर के मौजूदा सांसद आज़म खान फिलहाल जेल में हैं और उनका मुकाबला रामपुर के नवाब घराने के नवाब क़ाज़िम अली उर्फ नवेद मियां से है. इसके अलावा रामपुर की ही स्वार सीट से आज़म खान के बेटे अब्दुल्ला आज़म और नवेद मियां के बेटे हैदर अली खान उर्फ हमज़ा मियां के बीच मुकाबला है. आज़म खां और उनके बेटे अब्दुल्ला आज़म समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं जबकि नवेद मियां कांग्रेस के टिकट पर और उनके बेटे हैदर अली अपना दल से उम्मीदवार हैं. अपना दल का भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन है. पहले हैदर अली भी कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे लेकिन ऐन मौके पर बीजेपी ने यह सीट गठबंधन सहयोगी अपना दल को दे दी और अपना दल ने हैदर अली को टिकट दिया. जेल से चुनाव लड़ रहे हैं आज़म खान पिछली समाजवादी पार्टी सरकार में अहम हैसियत रखने वाले पूर्व कैबिनेट मंत्री आज़म खान के खिलाफ पिछले पांच साल में कई मुकदमे दर्ज हुए और इस समय वो सीतापुर जेल में बंद हैं. उनके राजनीतिक करियर में यह पहला मौका है जबकि वो शहर में रहे बिना चुनाव लड़ रहे हों. जेल में बंद होने के कारण उनके चुनाव प्रचार का ज़िम्मा उनकी पत्नी और रामपुर शहर की मौजूदा विधायक तंजीम फातिमा, उनके बेटे और बेटी ने संभाल रखा है. आज़म खान के एक करीबी कार्यकर्ता रसूल मोहम्मद कहते हैं, “आज भले ही आज़म खान साहब जेल में हो लेकिन वो रामपुर के हर नागरिक के दिल में मौजूद हैं. उनके बेटे अब्दुल्ला आज़म खान की जितनी भी रैलियां और जनसंपर्क कार्यक्रम हो रहे हैं, उन्हें हम लोग सोशल मीडिया के ज़रिए लोगों तक पहुंचा रहे हैं” इसके साथ ही रसूल मोहम्मद ने यह भी कहा, “हर क्षेत्र के कार्यकर्ताओं की ड्यूटी लगा रखी है कि बड़े आज़म खान द्वारा किए कामों को आम लोगों तक पहुंचाए. यहां के लोगों ने देख रखा है कि कैसे बकरी चोरी और मुर्गी चोरी के मामलों में एक कद्दावर नेता को जेल में रखा गया है. इसके पीछे असली कारण क्या है, वो रामपुर ही नहीं देश और प्रदेश की जनता को भी पता है.” कुछ दिन पहले तक आज़म खान के बेटे और स्वार टांडा क्षेत्र से सपा उम्मीदवार अब्दुल्ला आज़म भी जेल में थे लेकिन जमानत मिलने के बाद वो बाहर आ गए हैं. इस समय अपना और अपने पिता दोनों के चुनाव प्रचार की ज़िम्मेदारी वो निभा रहे हैं.
डीडब्ल्यू से बातचीत में अब्दुल्ला कहते हैं, “मैंने अपना समय बांट रखा है. रात में यदि स्वार में प्रचार करता हूं तो दिन में रामपुर में और जब दिन में स्वार में प्रचार करते हैं तो रात में रामपुर पहुंचकर डोर टू डोर कैंपेन शुरू कर देता हूं. इसके बाद कार्यकर्ताओं से मुलाकात करता हूं.” रामपुर में आज़म खान के प्रति लोगों की सहानुभूति है तो उनके विरोधी भी कम नहीं हैं. विरोधियों का आरोप है कि सत्ता में रहते हुए आज़म खान ने यहां के मुसलमानों पर जो ज़ुल्म ढाए हैं, उन्हें कोई भूला नहीं हैं. विकास कार्यों के नाम पर जिन लोगों को बेघर किया गया है, उनके भीतर आज़म खान को लेकर बेहद नाराज़गी है. भारतीय जनता पार्टी ने यहां से सामाजिक कार्यकर्ता आकाश सक्सेना को टिकट दिया है जबकि आम आदमी पार्टी से फैसल लाला चुनाव लड़ रहे हैं. एक ही परिवार में कांग्रेस बीजेपी दोनों दूसरी ओर, रामपुर के नूर महल में रहने वाले नवाब खानदान के वारिस काज़िम अली उर्फ नवेद मियां भी मुकाबले में हैं और उनका परिवार एक ओर कांग्रेस का प्रचार कर रहा है तो दूसरी ओर बीजेपी और अपना दल का. स्थानीय पत्रकार मोहम्मद मुजस्सिम बताते हैं, “आमतौर पर यह परिवार विदेश में ही रहता है लेकिन चुनाव के चलते परिवार के ज्यादातर लोगों ने रामपुर में ही डेरा डाल रखा है. बेगम साहिबा अलग-अलग जगहों पर बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए वोट मांग रही हैं. रामपुर में कांग्रेस के लिए तो स्वार में बीजेपी के लिए. क्योंकि एक जगह से उनके पति चुनाव मैदान में हैं तो दूसरी जगह से बेटा.” रामपुर के नवाब खानदान के वारिस नवाब काजिम अली खान उर्फ नवेद मियां इस बार रामपुर सीट से कांग्रेस के टिकट पर मैदान में हैं जबकि इससे पहले वो रामपुर जिले की स्वार सीट से चुनाव लड़ते रहे हैं. पिछले चुनाव में आज़म खान के बेटे अब्दुल्ला आज़म ने हरा दिया था और इस बार अब्दुल्ला का मुकाबला नवेद मियां के बेटे से है. नवाब खानदान का रामपुर की राजनीति में शुरू से ही दखल रहा और साल 1967 में सबसे पहले नवाब अली खान उर्फ मिकी मियां रामपुर से सांसद बने.
वो यहां से पांच बार सांसद रहे. उनके बाद उनकी राजनीतिक विरासत उनकी पत्नी बेगम नूर बानो ने संभाली और वो भी यहां से दो बार सांसद रहीं. नवाब काजिम अली खां उर्फ नवेद मियां उन्हीं के बेटे हैं और रामपुर की स्वार सीट से कई बार विधायक रहे हैं. उससे पहले यह सीट बीजेपी का गढ़ हुआ करती थी और बीजेपी के शिव बहादुर सक्सेना यहां से चार बार विधायक रहे हैं. एक तरफ आजम खान दूसरी तरफ नवाब खानदान मोहम्मद मुजस्सिम बताते हैं, “आज़म खान ने पहले नवाब परिवार की ही छत्रछाया में राजनीति शुरू की लेकिन धीरे-धीरे वो प्रदेश की राजनीति में आगे बढ़ते गए और नवाब परिवार की राजनीतिक हैसियत सिमटती गई. इस वजह से दोनों परिवारों में राजनीतिक विरोध भी बढ़ता गया.” 1980 में आज़म खान जनता पार्टी के टिकट पर लड़े और जीते. ये पहली बार था जब आजम खान विधायक बने. इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. 1985 में लोक दल के टिकट पर और फिर 1989 में जनता दल के टिकट पर निर्वाचित हुए और 1989 में ही पहली बार यूपी सरकार में मंत्री बने. इसके बाद 1996 को छोड़कर आजम खान यहां से लगातार विधायक बनते रहे. 1992 में समाजवादी पार्टी के गठन के साथ ही वो उससे जुड़ गए और धीरे-धीरे पार्टी का एक प्रमुख चेहरा बन गए. साल 2017 में यूपी में बीजेपी की सरकार बनने के बाद अवैध जमीन की खरीद-फरोख्त समेत भैंस चुराने जैसे मामलों में उनके खिलाफ दर्जनों केस दर्ज हुए. उनके बेटे अब्दुल्ला आज़म पर चुनाव के दौरान जन्मतिथि की गलत जानकारी देने का केस दर्ज हुआ और वो जेल गए. आजम खान की पत्नी पर भी कई केस दर्ज हुए और वो भी जेल में रहीं. बेटे अब्दुल्ला और पत्नी तंजीम फातिमा तो जमानत मिलने के बाद जेल से बाहर हैं लेकिन आजम खान अब तक जेल में ही हैं.