विभिन्न समस्याओं से जूझ रहे हैं उर्दू अकादमी के लगभग डेढ़ सौ उर्दू इंस्ट्रक्टर्स।

सरकार पर लगाया उर्दू के प्रति लापरवाही का आरोप ।

उर्दू अकादमी दिल्ली के चेयरमैन मनीष सिसोदिया हैं तो वाइस चेयरमैन हाजी ताज मोहम्मद हैं

उर्दू अकादमी दिल्ली सरकार के अंतर्गत दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों में लगभग 150 से अधिक उर्दू साक्षरता केंद्र चलाए जाते हैं जो कि कोरोना के कारण पिछले 2 साल से मुकम्मल तौर पर बंद पड़े हैं और अभी भी खुलने की कुछ आसार नज़र नहीं आ रहे ,मामूली रक़म पाने वाले उर्दू साक्षरता केंद्रों में अपनी सेवा देने वाले इंस्ट्रक्टर को 2 सालों में एक रुपया भी नहीं मिल सका है आख़िरकार उनके सब्र का पैमाना लबरेज़ हो चुका है और सरकार से मांग करने पर मजबूर हो गए हैं कि सरकार उनके वर्तमान और भविष्य के प्रति कुछ गंभीर हो उन्होंने सवाल किया के क्या हम उर्दू वालों का हाल उन निर्माण मज़दूरों और ऑटो टैक्सी वालों से भी बदतर हो गया जिन्हें लाक डाउन में 5-5 हज़ार दिये गए? और उर्दू वालों का हाल तक भी ना पूछा?

यमुनापार के खजूरी में उर्दू साक्षरता केंद्र चलाने वाले महफूज़ आलम ने कहा पिछले 2 वर्षों से सेंटर बंद पड़े हैं इस बीच शिक्षकों से यह भी नहीं पूछा गया कि आख़िर वह किस हाल में जीवन व्यतीत कर रहे हैं जबकि मज़दूरों को उनके अकाउंट में पैसे भेजे गए, अगर हुकूमत उर्दू से मोहब्बत का दम भरती है तो उसे चाहिए कि उर्दू की प्रचार प्रसार के प्रति ईमानदारी से गंभीर भी हो और उर्दू की सेवा करने वाले लोगों के बारे में सोचें , उन्होंने कहा कि हम लोग कई बार उर्दू अकादमी गए और वाइस चेयरमैन साहब से भी बात की मगर सिर्फ आश्वासन ही मिला परंतु हल कुछ ना निकल सका।दिल्ली में लगभग 156 उर्दू साक्षरता केंद्र हैं उनको बहाल करने के बजाय 500 साक्षरता केंद्र खोलने की खुशख़बरी सुना दी जाती है अखबारों में समाचार प्रकाशित कर दिए जाते हैं और वाहवाही लूट ली जाती है लेकिन साक्षरता केंद्रों को बहाल करने और खोलने की तरफ सरकार का कोई ध्यान नहीं है।

द्वारका से इरफान राही ने कहा कि मैं उर्दू साक्षरता केंद्र इसलिए नहीं चला रहा कि इससे रोजी-रोटी चल सके बल्कि उर्दू की मोहब्बत व लगन में इस सेंटर को नसीर पुर द्वारका में इसलिए चलाने पर मजबूर हैं स्कूलों में भी नहीं पढ़ाई जाती मगर उर्दू अकादमी और दिल्ली सरकार की नज़र में हम उर्दू शिक्षकों की हैसियत आंगनवाड़ी के वर्कर के बराबर से भी कम है, जिस मकान में आंगनवाड़ी केंद्र होते हैं उस जगह का किराया भी मिलता है और दिल्ली में 1000 से अधिक आंगनवाड़ी केंद्र हैं और उर्दू के सेंटर सिर्फ डेढ़ सौ हैं इसके बावजूद क्या हालत है वह बताने की ज़रूरत नहीं है उन्होंने कहा कि 2 साल से सेंटर बंद हैं मगर उसको खोलने के लिए दिल्ली सरकार इस तरफ बिल्कुल भी ध्यान नहीं दे रही है, उन्होंने सवाल किया कि दिल्ली सरकार उर्दू अख़बारों में फुल पेज के बड़े बड़े इश्तहार प्रकाशित करवाती है मगर आवाम के बच्चों को उर्दू नहीं पढ़ाई जा रही ये नीति ग़लत है , आख़िर इन विज्ञापनों को भविष्य में कौन पढ़ेगा और इस प्रकार से धीरे-धीरे उर्दू दिल्ली से समाप्त हो जाएगी। उन्होंने अकादमी की इस रणनीति पर भी सवाल उठाए कि प्रत्येक शिक्षक को हर वर्ष इंटरव्यू तथा परीक्षा देनी पड़ती है जब एक बार परीक्षा तथा इंटरव्यू हो गया तो बार-बार उस शिक्षक का इंटरव्यू क्यों ?

ओखला की सफिया इरम अपना दर्द बयान करते हुए कहा के उर्दू अकादमी के साक्षरता केंद्र चलाने वाली अक्सर महिलाएं आर्थिक स्थिति से बेहद कमज़ोर हैं कुछ बीमार हैं कुछ एकल महिलाएं हैं कुछ विधवा है और कुछ तलाक़शुदा मजबूर हैं वह मेहनत करके इन साक्षरता केंद्रों को चलाती हैं और अपना गुजर बसर करती हैं लेकिन 2 साल से उन घरों के हालात को पूछने वाला कोई नहीं ? उन्होंने कहा के प्रत्येक वर्ष 8 महीने केंद्र चलाने के लिए दिया जाता है और उसमें हर बार परीक्षा तथा इंटरव्यू लिया जाता है यह समझ से परे है। 10 साल से चलाने वाला शिक्षक अगर कामयाब हो गया तो ठीक है वरना कभी भी उसका केंद्र रद्द कर दिया जाता है उन्होंने कहा कि अकादमी के चेयरमैन से कई शिकायतें की मगर आश्वासन के लिए ठंडा निवाला पेश कर दिया जाता है।

जाफराबाद की मुदस्सिर निज़ाम ने कहा है कि सेंटर शुरू ना होने से बच्चों की पढ़ाई का काफ़ी नुकसान हो रहा है, वर्ष 2018-19 तथा 2019-20 होनहार बच्चों के ईनाम और उर्दू शिक्षकों का अवार्ड भी नहीं दिए गए, 2 साल से हमें 1रुपया भी नहीं मिला, हमें कितनी परेशानी हो रही है हम ही जानते हैं जबकि उर्दू अकादमी वाले जब चाहते हैं बुला लेते और कहते हैं कि आप लोगों के बारे में बात होगी जब वहां जाओ तो भीड़ दिखाकर अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं और हमें कह दिया जाता है कि जल्द ही आप लोगों का काम हो जाएगा फाइल गई हुई है जैसे ही पास होगी सेंटर खुल जाएंगे मगर कुछ नहीं हुआ हमारा सरकार से मुतालबा है कि जल्द से जल्द सेंटर खोले जाएं जिससे कि उर्दू सीखने के लिए लालायित बच्चे और परिवार उर्दू शिक्षक हैं और अपना भविष्य बना सके।

करावल नगर से नफीस सकलैनी कहते हैं के आम आदमी पार्टी की केजरीवाल सरकार का उर्दू के प्रति ऐसा रवैया समझ से बाहर है हम सरकार से मांग करते हैं कि उर्दू ख़्वांदगी मरकज़ का मसला फौरन हल करें।

रब्बानी समरीन ने कहा कि आम आदमी पार्टी की केजरीवाल सरकार से अल्पसंख्यकों को बहुत सी उम्मीदें थी और आशाएं थी लेकिन धीरे-धीरे लगता है कि सरकार का अल्पसंख्यकों के प्रति रुझान कम हो गया है क्योंकि स्कूलों में उर्दू को समाप्त किया जा रहा है और अब जो चंद सेंटर चल रहे थे वह भी बंद है, उर्दू का भविष्य दिल्ली में अंधेरे में दिखाई दे रहा है।

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