हल्द्वानी पर पूरे देश की नज़र है. 4400 से ज़ायद घर, 50 हज़ार नागरिक, बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी, 2 मंदिर, 20 मस्जिद, 3 सरकारी स्कूल, 11 मान्यता प्राप्त निजी स्कूल, एक सरकारी स्वास्थ्य केंद्र, क्या इन सबकुछ पर 8 जनवरी को अतिक्रमण के ठप्पे के साथ अब बुलडोजर चलाया जाएगा?

आरोप है कि हलद्वानी में करीब 4400 परिवार रेलवे की ज़मीन पर अतिक्रमण करके रह रही हैं. उत्तराखंड हाई कोर्ट ने रेलवे को 7 दिन में अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया है. आज इस केस में सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई होनी है.

उधर हल्द्वानी में दुआओं का दौर जारी है. सुनवाई से पहले इस केस को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं…

पहला- अगर रेलवे की ज़मीन पर अतिक्रमण हुआ तो फिर सरकार हाउस टैक्स, वॉटर टैक्स, बिजली का बिल कैसे लेती रही?

दूसरा- अगर रेलवे की जमीन है तो फिर सरकार ने खुद यहां तीन-तीन सरकारी स्कूल और सरकारी अस्पताल कैसे बना दिए?

तीसरा- सरकारी स्कूल भी गिरेंगे तो बच्चों को अस्थाई रूप से पढ़ाने का प्रशासन सोचता है और हजारों लोग बेघर होकर कहां जाएंगे, ये क्यों नहीं सोचा जाता ? जब सरकार तक को नहीं पता होता कि ज़मीन रेलवे की है या सरकारी तो फिर सिर्फ जनता क्यों अतिक्रमणकारी है ? इन सवालों का जवाब मिलना बाकी है, लेकिन प्रशासन ने अपनी तैयारी पूरी कर ली है.

लेकिन अपने हाथ में तमाम दस्तावज़, पुराने काग़ज़ और दलीलों के साथ लोग सवाल उठाते हैं. स्थानीय लोग कहते हैं कि रेलवे की जमीन पर हमने अतिक्रमण नहीं किया, रेलवे हमारे पीछे पड़ी है. फिलहाल 4400 परिवारों और 50 हजार लोग रेलवे के लोग अतिक्रमणकारी हैं या फिर अपना घर बचाने के लिए ये लाचारी के मोड़ पर खड़े हैं,

अब फैसला सुप्रीम कोर्ट को करना है.

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