सच्चा मुसलमान वो है जिसके दिल में सबके लिये प्यार और इज़्ज़त होती है और जो किसी भी तरह की तशद्दूद (violence) और इंतेहा पसंद (Extremist) को बढ़ावा नहीं देता है.
वही इस्लाम में बताया गया है की सबके साथ अच्छा सुलूक किया करो, बल्कि सही मायनों में अच्छा सुलूक वो नहीं है कि अगर आपके साथ कोई अच्छा सुलूक करे तो आप उसके साथ अच्छा सुलूक करें, अच्छा सुलूक वो है कि अगर आपके साथ लोग बुरा बर्ताव करें फिर भी आप सबके साथ अच्छे से पेश आयें।
मुसकुराते चेहरे के साथ लोगों से मिलना,ग़रीबों पर माल खर्च करना, किसी को तकलीफ न देना और तकब्बुर् न करना भी इस्लाम की तालिमात् है।
अच्छे अख्लाक़ (Behavior) का दायरा कितना फैला हुआ है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक हदीस है के सहाबी मुआज इब्ने जमल (र.) ने कहा है जब उन्हें यमन का गवर्नर बना कर भेजा गया था तब उनसे कहा गया था कि “ऐ मुआज! लोगों के साथ अच्छा सूलूक करना.”
एक और हदीस है कि सादगी, ईमान का तक़ाज़ा है. इसका मतलब यह है कि ज़्यादा चमक धमक के बजाए खामोशी और सादगी से रहें।
इस्लाम में बताया गया है कि प्रोफेट मोहम्मद (स॰) को दुनिया में बुराई को जड़ से खत्म करने और अच्छे अख्लाक़ को फैलाने के लिए भेजा गया था।
लेकिन आज हम इसके उलट, गाली देकर, बदकलामि करके फ़क़्र महसूस करते है,
हम लोगों को इस्लाम की तलीमात् को ध्यान में रखते ही खुद को बदलने की सख्त ज़रूरत है।