Authored : Rajni Bhagwat
रोहिणी फिल्म की ओटीटी पर आने वाली फ़िल्म ‘परमपद’ के डायरेक्टर, प्रोड्यूसर ‘रमन ऋषि द्विवेदी’ जी से हमारी कुछ खास बातचीत।
अपने बारे में कुछ बताइए।
मेरा नाम ‘रमन ऋषि द्विवेदी’ है। फिल्म इंडस्ट्री में मैं 11th क्लास में पहुंचा यह 1989 की बात है उस टाइम जब मैं साइंस ले रखी थी पर कहीं ना कहीं कलाकार कला की तरफ मेरा अट्रैक्शन शुरू हो रहा था। मेरे पापा को बहुत बार बोला 11th के पेपर के बाद पापा के साथ मुंबई गया वहां सुदीप स्टूडियो गए जहां ‘गुलशन कुमार’ सब थे उनसे मिला उन्होंने बहुत प्रोत्साहित किया पापा की तरफ से यह जवाब मिला कि बेटा अगर जाना है तो तुमको सबसे पहले पढ़ाई करनी पड़ेगी। पढ़ाई को दूर ऐसा हुआ की 12th के बाद इंग्लिश ऑनर्स किया मा इंग्लिश ऑनर्स करने के बाद फिल्म के लिए डिप्लोमा मास कम्युनिकेशन किया फिर फिल्म लाइन का काम किया स्क्रिप्टिंग सीखी, स्टील फोटोग्राफी सीखी, एडिटिंग सीखी तब कहीं जाकर डायरेक्शन में कदम रखा। उसके बाद ‘यूनिवर्सल म्यूजिक डिपार्टमेंट’ में गया। वहां बहुत बड़े-बड़े बजट के म्यूजिक एल्बम बनते थे। ‘फाल्गुनी पाठक’ को ‘अयो रामा’ सॉन्ग मैं ही लेकर आया था दिल्ली के अंदर, तो इस तरह से मेरे जीवन का प्रारंभ हुआ।
फ़िल्म इंडस्ट्री में आने के लिए आपको किसने प्रेरित किया?
मेरे पिता का नाम ‘पवन देव द्विवेदी’ है। वे पंजाबी इंडस्ट्री के नामीगिनामी फिल्म मेकर थे। हमारा अपना थिएटर ग्रुप था। यह बातें मैं इसलिए बता रहा हूं क्योंकि, बचपन से हमारे घर में फिल्म इंडस्ट्री की स्क्रिप्टिंग, स्टोरीटेलिंग की बातें होती थी। पापा ने जब फिल्म बनाई थी ‘सतीश कौल’ साहब के साथ जिसका जिक्र ‘शाहरुख खान’ साहब ने भी किया था अपने एक इंटरव्यू में, इस फिल्म में वे भी थें, जिससे उन्हें भी प्रेरणा मिली थी और उसका निर्देशन भी पापा कर रहे थे।
फिल्म इंडस्ट्री में आपको किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा?
चुनौतियां और फिल्म इंडस्ट्री का जो दो अलग-अलग शब्द है इनकी सच्चाई ये है कि यह दोनों एक ही है। फिल्म इंडस्ट्री को कला कहें तो फिल्म को माता बोला जाता है। बिना चुनौती के मूर्ति को ठोकरे नहीं लगती, तब तक वह मूर्ति भी नहीं बनती। चुनौतियां तो बहुत है शायद मुझे अपने आप से जो उम्मीदें थी, चाह थी वो सबसे बड़ी चुनौती थी। रिजेक्शन बहुत थे बहुत को मैंने भी रिजेक्ट किया है जब मैं यूनिवर्सल में था। आज भी करना पड़ता है, उस तरह से नहीं लेकिन हम इंडस्ट्री को सपने की नजर से नहीं देखते हैं हकीकत तो यह है कि यह एक दर्दनाक है जो एक शाही शेर था “आज का दरिया है और डूब कर जाना है।” वो ये कहानी है।
फ़िल्म इंडस्ट्री में आप कितने समय से हैं?
मेरी जो कंपनी है ‘रोहिणी फिल्मस’ जैसे मैं आ गया था 11th क्लास के बाद। तो मेरी कंपनी को 30-32 साल हो गए हैं, तो तकरीबन 30-35 साल के आसपास इस इंडस्ट्री में सांस लेते, जीते, देखते, समझते और सीखते हो गए हैं और आज भी सीख रहा हूं।
अपनी पसंदीदा फ़िल्म/ सीरियल के बारे में बताइए?
पहले जो सीरियल बना करते थे वह मुझे ज्यादा पसंद थे। जैसे हम लोग ‘बुनियाद’, ‘रामायण’, ‘महाभारत’ बहुत थे। पहले ‘देख भाई देख’ जिसमें वल्गर कॉमेडी नहीं थी। अच्छी चीज़ हुआ करती थी फैमिली वैल्यूज के बारे में बातें की जाती थी। और फ़िल्म में बहुत ज्यादा जिसने मुझे इफेक्ट किया वह ‘प्यासा’ फ़िल्म है और ‘गाईड’ ‘देव आनंद’ जी की फ़िल्म, इंडियन इंडस्ट्री की। रशियन फ़िल्म मेकर ‘आंद्रे’ उनकी फ़िल्में बहुत अपील करती है मुझे आज तक।
अपकमिंग प्रोजेक्टस क्या हैं।
मैं अभी 3 साल में पिछली चार फिल्में शूट की है एक ओट पर सबमिट हो चुकी है बाकी तीन फिल्में हैं उनका पोस्ट चल रहा है जो मैंने सबमिट की है वह ‘परमपद’ है उसका टेलीकास्ट डेट का वेट है, यह फिल्म हिंदू समाज के संस्कार, आत्मा की गति की मोक्ष प्राप्ति की है और कपल आजकल कैसे जी रहे हैं। दूसरी हॉरर बनाई थी बाकी दो जो फिल्में हैं कॉमेडी और सोशल हार्ड काइंडली फिल्म है और अगले दो प्रोजेक्ट्स हैं, अभी उन पर भी काम करना है बात चल रही है।
हमारे रीडर्स के लिए मैसेज।
मैसेज तो मैं वही दे सकता हूं जो मैं अपनी बेटी को देता हूं, कि पढ़ना बहुत जरूरी है अगर आपको आर्टिस्ट बना है और आप अपने आप को आर्टिस्ट कहते हैं। फाइनेंशियल चैलेंजस बहुत आते हैं, अर्जुन की तरह फ़ोकस क्लियर रखिए और चलते रहिए। लेकिन सच्चाई से चलिए आजकल AI आ रहा है उसे यूज कीजिए लेकिन जो नॉलेज है वह लिटरेचर है।
शुभकामनाएं
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