लेखक : रजनी भागवत

भ्रूण हत्या हो या बेटी हत्या, इसमें हमें किसका योगदान समझना चाहिए। मजबूरी है या ज़रूरत किसे पता या कौन है ज़िम्मेदार।

अक्सर लड़का लड़के के परिवार वालों को ही चाहिए होता है। उनका वंश चलाने के लिए पर कई बार लड़की को बहुत ज़्यादा प्रेशर झेलना पड़ता है, अपने परिवार का लड़का ना होने पर जिसकी वजह से वह डिप्रेशन में भी चली जाती है। वजह, उसका लड़का क्यों नहीं हो रहा। एक औरत ही औरत को अगर दुख दे सकती है।

तो क्यों इस दुनिया में औरत को इतने ऊंचे स्थान पर रखा जाता है। सिर्फ ऊंचे स्थान का यह मतलब नहीं है कि औरत एक ज़िंदगी को जन्म देती है ऐसा बिल्कुल नहीं है।

एक औरत 9 महीने तक बच्चे को अपनी कोख में रखती है उसका पालन करती है उसे अपने खून से सींचती है। 9 महीने बाद बच्चा गर्भ से बाहर आता है या फिर ऑपरेशन से पेट फाड़ कर, जोकि दोनों ही असहनीय दर्द के साथ होता है बेशक हम माने की टेक्नोलॉजी इतनी बेहतर हो गई है कि दर्द का अब पता ही नहीं चलता है।

लेकिन औरत के लिए बच्चा सब कुछ होता है उसके लिए लिंग भेदभाव कोई मायने नहीं रखता तो फिर क्यों यह प्रताड़ना औरत को झेलनी पड़ती है एक औरत को ही जन्म देने के लिए उसे जिम्मेदार क्यों ठहराया जाता है। जबकि जिम्मेदार तो सिर्फ आदमी होता है।

पर जिम्मेदारी सिर्फ औरतों को ही झेलनी पड़ती है। यह समाज अपने कड़वे बोल से औरत को इतना परेशान कर देता है। कि उसने बेटी को जन्म दिया है, बेटे को नहीं यह सबसे बड़ी परेशानी औरत की ही है।

जो यह सब सुनती है बर्दाश्त करती है और कई बार भ्रूण हत्या जैसे काम भी कर डालती है।

यह हमारा कैसा समाज है जो इतना आगे बढ़ गया लेकिन लड़के और लड़की में भेदभाव कम नहीं कर पाया। क्या बदलना चाहिए, हमें इस समाज में क्या सोच रखनी चाहिए, हमें अपने बच्चों को क्या सीख देनी चाहिए।

यही शुरुआत है कि ऐसे पाप को हमें कैसे कम करना चाहिए और बच्चों को एक अच्छी शिक्षा, अच्छा माहौल, अच्छी सोच से नवाज़ना चाहिए। यह हमारी जिम्मेदारी है जिसे हमें पूरा करना ज़रूरी है।

कि भ्रूण हत्या पाप नहीं एक महापाप है जिस जान को इस दुनिया में आने से रोका जा रहा है जोकि कुदरत के खिलाफ़ है। यह एक बहुत बड़ा अपराध है। जिसे रोकना हम समाज वासियों के लिए ज़रूरी है।

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