सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. सायरा खान ने प्रेस बयान में कहा कि सदियों से वक्फ संपत्तियों का उपयोग मुस्लिम समुदाय में शिक्षा, स्वास्थ्य और कल्याण के उद्देश्यों के लिए किया जाता रहा है, लेकिन समय के साथ इन संपत्तियों के दुरुपयोग, कुप्रबंधन और उपेक्षा के कारण इनके मूल लाभार्थी वर्ग, विशेषकर महिलाएं और गरीब मुसलमान अपने अधिकारों से वंचित हो गए।
सरकार द्वारा हाल ही में प्रस्तुत वक्फ (संशोधन) विधेयक को इस संदर्भ में एक सकारात्मक और ऐतिहासिक घटनाक्रम बताया जा रहा है, जो मुस्लिम समुदाय में महिलाओं के लिए न्याय, पारदर्शिता और समावेश सुनिश्चित करने का एक प्रयास है। इस विधेयक की धारा 14 के अंतर्गत वक्फ बोर्ड को अधिक समावेशी, पारदर्शी और लोकतांत्रिक बनाने का प्रयास किया गया है। इसमें मुस्लिम समुदाय के पिछड़े वर्गों, महिलाओं, शिया, सुन्नी, बोहरी और आगा खानी समुदायों को उचित प्रतिनिधित्व देने की बात कही गई है।
राज्य सरकार को वक्फ संपत्तियों की संख्या और मूल्य के अनुसार बोर्ड में इन वर्गों को प्रतिनिधित्व देने का अधिकार होगा। धारा 13(2ए) राज्य को आगा खानी और बोहरी समुदायों के लिए अलग-अलग वक्फ बोर्ड स्थापित करने की अनुमति देती है। यह संशोधन न केवल बोर्ड की संरचना को संतुलित करता है, बल्कि समुदाय के भीतर न्याय और समानता के इस्लामी सिद्धांतों को भी बढ़ावा देता है।
इस्लाम न्याय, दया और मानवता पर आधारित धर्म है। इस्लाम में महिलाओं के अधिकारों को विशेष महत्व दिया गया है। कु़रान और सुन्नत, जो इस्लामी जीवन के दो मूलभूत स्तंभ हैं, महिलाओं के सम्मान, उनके अधिकार, शिक्षा, उत्तराधिकार और वैवाहिक स्वायत्तता की स्पष्ट रूप से बात करते हैं। कु़रान कहता है, “हमने तुम सबको एक ही आत्मा से पैदा किया है,” और आगे कहता है कि पुरुषों का अपने माता-पिता और करीबी रिश्तेदारों द्वारा छोड़ी गई संपत्ति में हिस्सा है, और महिलाओं का भी उसमें हिस्सा है। पैगम्बर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहा, “तुममें सबसे अच्छा वह है जो अपनी पत्नी के साथ अच्छा व्यवहार करता है।” ये शिक्षाएं वक्फ संशोधन विधेयक में परिलक्षित होती हैं, जहां महिलाओं को न केवल वक्फ बोर्डों में प्रतिनिधित्व दिया गया है, बल्कि उन्हें निर्णय लेने में भी शामिल किया गया है। इससे उनका आत्मविश्वास, सामाजिक प्रतिष्ठा और नेतृत्व कौशल बढ़ेगा। विधेयक का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू यह है कि वक्फ संपत्तियों से प्राप्त आय का उपयोग शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और कल्याणकारी गतिविधियों के लिए किया जाएगा, जिससे समाज के उन वर्गों को लाभ मिलेगा जो अब तक हाशिए पर थे, विशेषकर गरीब मुसलमान, महिलाएं, अनाथ और विधवाएं। इस आय से छात्रवृत्ति, कोचिंग, महिला प्रशिक्षण केंद्र, वृद्धाश्रम और अनाथालय जैसी परियोजनाओं को बढ़ावा दिया जाएगा।
संशोधन विधेयक एक सुधारात्मक कदम है जो न केवल इस्लामी सिद्धांतों के अनुरूप है बल्कि आधुनिक युग की आवश्यकताओं को भी पूरा करता है। यह विधेयक मुस्लिम महिलाओं को ‘योग्य’ से ‘निर्णयकर्ता’ बनाने की दिशा में पहला कदम है। यदि इसे ईमानदारी से लागू किया जाए तो यह न केवल समुदाय में न्याय और प्रगति का स्रोत बनेगा बल्कि पूरे देश के लिए अनुकरणीय आदर्श प्रस्तुत करेगा।