(मोहम्मद गुफरान)

नई दिल्ली,10अप्रैल : बी जे पी अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रिय सेक्रेटरी जनरल और डॉक्टर सूफी एम.के. चिश्ती ने आज कहा कि रमजान के मुबारक महीने का मकसद मुसलमानों को अपनी ज़िन्दगी के मकसद को फिर से समझने की कोशिश करना है,अगर किसी ने किसी के साथ गलत किया है तो भी उन्हें माफ़ कर देना चाहिए, बुरी आदतों से बचना चाहिए और गरीब और दुखी लोगों को पैसा, कपडा, भोजन इत्यादि दान दक्षिणा करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि रमजान के इस महीने में जो नेकी करेगा और रोज़ा के दौरान अपने दिल को साफ़ पाक रखता है अल्लाह उसे खुशियाँ और बरकते देता है।

सूफी एम.के चिश्ती जी ने बताया कि अरबी में रोज़ा को ‘सौम’ कहा जाता है जिसका अर्थ है परहेज करना ना केवल खाने पीने से बल्कि बुरे काम, बुरी सोच और बुरे शब्दों से भी,इसलिए रोज़े सिर्फ शारीरिक परहेज नहीं है बल्कि एक इंसान के शरीर और रूह का रोज़े के भाव की तरफ एक जिम्मेदारी है। बी जे पी माइनोरिटी सेल के जनरल सेक्रेटरी डॉ.चिश्ती साहब ने कहा की रोज़ा सबके लिए फ़र्ज़ है जिसे रखने से आत्मा की शुद्धि, अल्लाह की तरफ पूरा ध्यान और कुर्बानी का अभ्यास होता है जिससे आदमी किसी भी तरह के लालच से खुद को दूर रखने में कामयाब हो पाता है। उन्होंने बताया कि रमजान का महीने का पहला अशरा रहमत का होता है यानि रमजान महीने के पहले 10 दिन रहमत के होते हैं जिसमे रोज़ा और नमाज़ करने वालों पर अल्लाह की रहमत होती है,जो लोग रोजा रखते है उन्हें दान करके गरीबों की मदद करनी चाहिए, साथ ही रमजान के 11वें रोज़े से 20वें रोज़े तक दूसरा अशरा चलता है जिसमे लोग अल्लाह की इबादत कर उनसे अपनी गुनाहों की माफ़ी मांगते है,परंतु अगर कोई इंसान रमजान के दौरान अपने गुनाहों की माफ़ी मांगता है तो अल्लाह उसकी माफ़ी को जल्दी से कुबुल कर लेते हैं और उन्हें जन्नत नसीब होती है। वहीं रमजान का तीसरा और आखरी अशरा 21वें रोज़े से लेकर 29वें या 30 वें रोज़े तक चलता है, ये अशरा सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इस अशरा का उद्देश्य जहन्नम की आग से खुद को सुरक्षित रखना है,ऐसे में हर मुसलमान को जहन्नम से बचने के लिए अल्लाह से दुआ करनी चाहिए।

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