पिछले कुछ सालों से रूपये कई बार गिरा हैं। मज़बूत अमेरिकी डॉलर और कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों ने भारतीय रुपये को रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंचा दिया है।

भारत में रुपया गिरना स्वतंत्रता के बाद से काफ़ी आम ही रहा है, लेकिन उसके साथ बहुत से कारण जुड़े हैं। फिर भी जब 2014 में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सत्ता में आया था, तब से लेकर भी रुपये में अब तक लगभग 40 फीसदी गिरावट आ चुकी है, जो बहुत ही ज़्यादा है। जिस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार शपथग्रहण की थी, उस दिन जोकि 26 मई, 2014 को भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के आर्काइव के मुताबिक़, अमेरिकी डॉलर की तुलना में रुपया 58.58 के स्तर पर बंद हुआ था, और वही इस हफ्ते कारोबार के दौरान रुपया (-0.13) गिरकर 83.35 के स्तर तक पहुंच गया था।

रिसर्च एनालिस्ट अनुज चौधरी के मुताबिक, कमज़ोर यूरो और पाउंड के कारण अमेरिकी डॉलर मज़बूत हुआ। डॉलर की मज़बूती के साथ-साथ चीनी युआन की गिरावट ने रुपए पर दबाव डाला। इसके अलावा, बाज़ार में डॉलर की कमी हो गई, जिसका असर भी रुपए पर पड़ा है।

वित्त वर्ष 2023-24 की शुरुआत में रुपया 82.39 रुपए प्रति डॉलर पर था, जो अब 83.35 रुपए प्रति डॉलर पर आ गया है। रुपए में गिरावट का मतलब है कि भारत के लिए चीजों का महंगा होना है।

पेट्रोलियम और सोने के दाम बढ़ेंगे।
सामानों की कीमत बढ़ने से महंगाई बढ़ेगी।
विदेश में पढ़ाई करना और घूमने जाना महंगा होगा।
देश में विदेशी निवेश घटेगा।

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