असम की सरकार ने बड़ा फैसला लेते हुए 1281 मदरसों को स्कूलों में परिवर्तित कर दिया. अब इन मदरसों का पाठ्यक्रम भी सामान्य स्कूलों की तरह हो जाएगा. साथ ही यहां बच्चों को कुरान और धर्म से जुड़े विषयों के बारे में नहीं पढ़ाया जाएगा.

इससे पहले अप्रैल 2021 में, मदरसा बोर्ड के तहत सभी 610 राज्य संचालित मदरसों को उच्च प्राथमिक, उच्च और उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में बदलाव कर दिया गया था, जिसमें शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की स्थिति, वेतन, भत्ते और सेवा शर्तों में कोई बदलाव नहीं हुआ था.

प्राथमिक शिक्षा निदेशक सुरंजना सेनापति ने न्यूज एजेंसी पीटीआई को बताया कि इन लगभग 1,300 मदरसा एमई स्कूलों में रेगलुर क्लासेस चल रही थीं और सरकारी निर्देश के अनुसार केवल उनका नामकरण “थोड़ा बदला” गया है. उन्होंने कहा, “मदरसों में छात्र, शिक्षक और अन्य कर्मचारी वहीं हैं उन्हें बदला नहीं गया है। इन वर्षों में कक्षाएं चल रही थीं और ये बिना किसी बदलाव के जारी रहेंगी.” यह पूछे जाने पर कि क्या आदेश जारी होने से पहले तक धर्मशास्त्र भी पढ़ाया जा रहा था, सेनापति ने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.

पीटीआई के पास जो सूची उपलब्ध है, उसमें सभी मदरसों और उनके नए नामों का जिक्र है. बजाली में आनंदपुर एमई मदरसा को आनंदपुर एमई स्कूल के नाम से जाना जाएगा, बारपेटा में चरकपारा एमई मदरसा चरकपारा एमई स्कूल बन गया है.

इसी तरह, दिसंबर 2020 में, असम मदरसा शिक्षा (प्रांतीयकरण) अधिनियम, 1995 और असम मदरसा शिक्षा (कर्मचारियों की सेवाओं का प्रांतीयकरण और मदरसा शैक्षणिक संस्थानों का पुनर्गठन) अधिनियम, 2018 को निरस्त कर दिया गया था. भाजपा के नेतृत्व वाली पहली असम सरकार के इस कदम ने सभी राज्य-वित्त पोषित मदरसों को बंद करने और उन्हें सामान्य स्कूलों में बदलने का रास्ता साफ कर दिया है.

ऑल असम मदरसा स्टूडेंट्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष वहीद-उल-ज़मां के मुताबिक, इन मदरसों को बंद करने का मतलब वहां पढ़ने वाले छात्रों के साथ अन्याय करना है.

वहीद-उल-ज़मां का कहना है कि ‘मदरसों को लेकर गलतफहमियां फैलाई गई हैं. जिन मदरसों को सरकार ने स्कूलों में बदल दिया है, उनमें धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ विज्ञान, गणित, अंग्रेजी, सामाजिक अध्ययन जैसे सामान्य विषय भी पढ़ाए जाते है।

उनका कहना है कि मदरसों में पढ़ने वाले कई छात्र डॉक्टर, वकील और अन्य लोकप्रिय पेशे में गए हैं।

उनका कहना है कि यह फैसला एक खास तरह की राजनीतिक सोच के तहत लिया गया है क्योंकि इससे पहले जब हिमंत बिस्वा सरमा कांग्रेस सरकार में शिक्षा मंत्री थे तो उन्होंने मदरसों के विकास के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए थे लेकिन बीजेपी में शामिल होने के बाद मदरसों के लिए उनकी सोच बदल गयी।

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