भारत में स्वतंत्रता के बाद से अब तक 3 बार मुद्रा का डिमोनेटाइजेशन किया गया है और जब जब देश में करेंसी को बदला गया है तो उसकी गाज सबसे ज्यादा आम नागरिक पर ही पड़ी हैं।

देश में पहली बार नोटबंदी अंग्रजी हुकूमत के समय 12 जनवरी, 1946 में की गई थी। उस समय भारत के वायसराय और गवर्नर जनरल सर आर्चीबाल्ड वेवेल थे जिन्होंने बड़े बैंक नोट बंद करने का अध्यादेश प्रस्‍तावित किया। जिसके बाद पहली बार 26 जनवरी रात 12 बजे के बाद से 500, 1000 और 10,000 रुपये के बड़े बैंक नोट पूरी तरह से अमान्‍य हो गए थे।

दूसरी बार 1978 में जनता पार्टी की सरकार ने देश में काले धन पर लगाम कसने के लिए प्रचलित ,1000 रुपये, 5000 रुपये और 10000 रुपये के नोटों को बंद करने की घोषणा की थी।

तीसरी बार 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नें 500 और 1000 रुपये के पूराने नोटो को बंद कर 500 रुपये और 2000 रुपये के नए नोट चलने में लाने की घोषणा की। प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद देश में कई जगह नोटों से भरे बैंग मिलने की घटनाएं सामने आई साथ ही बैंकों में भी नोट बदलवाने की कतारें लगी नजर आई।

मई 2023 को भारतीय रिजर्व बैंक की तरफ से एक बार फिर बड़े नोट को बंद करने की सार्वजनिक घोषणा कर दी गई है। RBI के निर्देश के अनूसार 30 सितंबर 2023 के बाद से ही देश में 2000 के नोटों को बंद किया जाएगा। कहने का मतलब यह हैं कि अक्टूबर में आप 2000 के नोट का उपयोग नहीं कर पाओंगें। RBI के अनूसार अगर किसी के पास ये नोट हैं तो वह बैंक में जाकर अपने पैसों को बदलवा सकता हैं लेकिन सितंबर के बाद इन नोटों की मार्केट वेल्यू जीरों हो जाएगी या युं कहें की 30 सितंबर के बाद 2000 का नोट मात्र एक कागज का एक टुकड़ा बन कर रह जाएगा। हालांकि एक बार में अधिकतम 20 हज़ार रुपये यानी 2000 रुपये के दस नोट ही बदले जाएंगे। जबकि एक दिन में कई बार भी नोट बदलवाए जा सकते हैं।

दरअसल रिज़र्व बैंक ने दो हज़ार रुपये के नोटों को वापस लेना, बैंक की क्लीन नोट पॉलिसी के तहत बताया गया है साथ ही कहा हैं कि RBI ने आईबीआई एक्ट की धारा 24(1) के तहत नवंबर 2016 में 2 हज़ार रुपये के नए नोट जारी किए गए थे। क्योकि अक्टूबर 2016 में हुई नोटबंदी के बाद पैदा हुई बाजार की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए किया गया था। साथ ही RBI ने कहा, ” जिसका उद्देश्य बाज़ार में दूसरे नए नोट पर्याप्त मात्रा में आ जाने के बाद पूरा हो गया, और इसलिए साल 2018-19 में दो हज़ार रुपये के नए नोट छापने भी बंद कर दिए गए थे.” दूसरी ओर बैंक का कहना हैं कि 2 हज़ार रुपये के नोट धीरे-धीरे आम इस्तेमाल से भी बाहर हो रहे थे और इस समय जितने भी 2 हज़ार रुपये रे नोट मार्केट में मौजूद हैं उनमें से 89 प्रतिशत नोट मार्च 2017 से पहले जारी किए थे।

हालांकि रिजर्व बैंक द्वारा उठाया गया कदम कुछ हद तक सही भी है क्योंकि अर्थशास्त्रियों का मत हैं की जितना बडा नोट, अर्थव्यवस्था के लिए उतना बडी समस्या, कहना के मलतब हैं बड़े नोटो के होने से देश की इकोनोमी पर नाकरात्मक प्रभाव पड़ता हैं दरअसल बड़े नोटों से रिश्वत और भ्रष्टाचारियों को काफी फायदा होता है, क्योंकि कम नोटों में भी ज्यादा से ज्यादा रक़म का लेन देन बिना सरकार की नजर में आए किया जा सकता हैं और तो और बड़ें नोट काले धन के रूप में इकट्ठा करना भी काफी हद तक आसान हो जाता हैं। काले धन का ज्यादातर इस्तेमाला भ्रष्टाचार, आतंकवाद फंडिंग और दूसरी गैरकानूनी गतिविधियो को बढ़ावा देनें के लिए किया जाता हैं। नकली नोट से निपटना भी देश की सरकार के लिए एक बड़ी समस्या होती हैं जिसे पर मुद्रा परिवर्तन को एक सटीक वार के रूप में देखा जा रहा हैं।

नोटबंदी से लेन-देन की प्रक्रिया के डिजिटाइजेशन में भी मदद मिली। 11 अप्रैल 2016 में यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (Unified Payment Interface) यानी यूपीआई की शुरुआत हुई थी इसके बाद से ही लगातार इसकी उपयोगिता बहुत तेजी से बढ़ी है। आजकल हर कोई पेटीएम, फोन-पे, गूगल पे, BHIM UPI के जरिए पेमेंट करना और लेना पसंद करता है। नोटबंदी के बाद देश में डिजिटल भुगतान के इस्तेमाल में बहुत तेजी के साथ बढ़ोतरी हुई है।

जैसे की हर चीज़ के कुछ नुकसान और कुछ फायतदे होते हैं वैसे की नोटबंदी के कुछ फायदों के साथ-साथ कुछ नुकसान भी हैं। जैसा सोच कर करेंसी को बदला जाता है असलीयत में वहीं परिणाम नहीं मिल पाना काफी मुश्किल हैं और यहीं हुआ 2016 की नोटबंदी के बाद, जब मोदी सरकार ने करोंड़ों का काला धन मिलने का अनुमान लगाकर देश में पूराने नोटों को बंद करने का फैसला लिया गया था लेकिन परिणाम कुछ अलग ही नजर आये, इससे आम जनता को अपने काम काज छोड़ कर अपनी जमापूंजी को बदलवाने के लिए बैंकों के चक्कर काटने पड़े वहीं काला धन रखने वालों ने सांठ-गांठ कर अपना पैसा सफेद करा लिया। वहीं देश की अर्थव्यवस्था वृद्धि पर भी इसके कुछ नकारात्मक प्रभाव देखे गए। पूराने नोटों के बंद होने के बाद बाजार में नई करेंसी को आने में जो समय लगा उससे बाजार में अस्थिरता का माहौल बन गया। जिसके कारण लोगों को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ा।

दुनिया भर में हर जगह नोटबंदी के प्रति आम जनता और जाने-माने अर्थशास्त्रियों की प्रतिक्रिया अच्छी और बुरी रही। कुछ का मानना ​​है कि नोटबंदी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में मास्टरस्ट्रोक है, जबकि कुछ का मानना ​​है कि यह काले धन को सफेद बनाने के लिए भ्रष्टाचार करने वालों के लिए मद्दगार। विमुद्रीकरण विभिन्न बुराइयों जैसे भ्रष्टाचार, जाली मुद्रा रैकेट, कर चोरी आदि से लड़ने के लिए महत्वपूर्ण है। यह अवैध आर्थिक गतिविधियों का पता लगाने और उन्हें प्रतिबंधित करने में मदद करता है। जैसा कि हम जानते हैं, हर चीज की कीमत चुकानी पड़ती है, विमुद्रीकरण की कुछ प्रमुख चिंताएँ भी हैं जैसे जनता को थोड़ी देर के लिए असुविधा, अर्थव्यवस्था की वृद्धि में ठहराव, आदि। इसलिए, यह एक साहसिक निर्णय है देश की भलाई के लिए, लेकिन अधिकारियों को उचित योजना के साथ पूरी तैयारियों और बड़ी सटीकता के साथ डिमोनेटाइजेशन का कदम उठाना चाहिए।

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