अम्मान में धूल भरी सड़क पर सफ़र करते हुए, हो सकता है कि हिजाज़ रेलवे स्टेशन आपकी नज़रों से ओझल हो जाए.

वहां पहुंचने के लिए, आपको शहर की घुमावदार सड़कों को भी नज़रअंदाज करना होगा, जो कि किसी भूलभुलैया से कम नहीं हैं और शहर के ऐतिहासिक केंद्र, पहाड़ों और प्राचीन क़िलों जैसे प्रसिद्ध स्थानों के आसपास दूर तक फ़ैली हुई हैं.

Amanda Ruggeri

हिजाज़ रेलवे स्टेशन तक पहुंचने का रास्ता वैसे तो लगभग पांच किलोमीटर का ही है, लेकिन जॉर्डन की राजधानी अम्मान में ट्रेफ़िक की वजह से अक्सर भीड़ रहती है, इसलिए ये यात्रा और भी लंबी हो जाती है.

रेलवे स्टेशन के पत्थर से बने प्रवेश द्वार से अंदर दाख़िल होते ही आपको ऐसा लगेगा जैसे आप किसी दूसरे युग या दूसरी दुनिया में पहुंच गए हों. यहां अभी भी भाप के इंजनों की ट्रेन चलती है. इस बात की काफ़ी उम्मीद है कि यह रेलवे ट्रैक मुस्लिम दुनिया को एक कर सकता है.

हिजाज़ रेलवे का निर्माण साल 1900 में उस्मानिया सल्तनत (वर्तमान तुर्की) के सुल्तान अब्दुल हमीद द्वितीय के आदेश पर किया गया था, ताकि मक्का की यात्रा को आसान और सुरक्षित बनाया जा सके.

रेलवे लाइन का दमिश्क-मदीना सेक्शन

इससे पहले, तीर्थयात्री ऊंटों पर काफिलों के रूप में महीनों नहीं तो हफ़्तों की यात्रा कर के मक्का पहुंचते थे.

दमिश्क से मदीना पहुंचने में कम से कम 40 दिन लगते थे और सूखे रेगिस्तान और पहाड़ों के कारण कई तीर्थयात्री रास्ते में ही अपनी जान की बाज़ी हार जाते थे. लेकिन रेलवे के निर्माण ने इस यात्रा को 40 दिन से घटाकर केवल पांच दिन कर दिया था.

इस प्रोजेक्ट के तहत, रेलवे लाइन का दमिश्क-मदीना सेक्शन पूरा होने के बाद, इस रेलवे लाइन को उत्तर में उस्मानिया सल्तनत की राजधानी कुस्तुंतुनिया (आज का स्तांबूल) और दक्षिण में मक्का तक विस्तार करना परियोजना में शामिल था. लेकिन इस्लाम धर्म के लिए इस रेलवे स्टेशन का महत्व यहीं ख़त्म नहीं होता है.

उस समय, इस असाधारण परिवहन परियोजना को पूरा करने के लिए आर्थिक सहायता पूरी तरह से मुसलामानों के दान, उस्मानिया सल्तनत के राजस्व और टैक्स से होती थी, और इसमें कोई विदेशी निवेश शामिल नहीं था.

और यही वजह है कि आज भी इस रास्ते को ‘वक्फ़’ माना जाता है: यानी एक ऐसी संपत्ति जो सभी मुसलमानों की साझी संपत्ति है.

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जॉर्डन में हिजाज़ रेलवे के महानिदेशक जनरल उज़्मा नालशिक कहते हैं, कि ”यह किसी देश की संपत्ति नहीं है, यह किसी व्यक्ति की संपत्ति नहीं है. यह दुनिया के सभी मुसलमानों की संपत्ति है. यह एक मस्जिद की तरह है और इसे बेचा नहीं जा सकता.’

उज़्मा नालशिक कहते हैं, कि ‘दुनिया का कोई भी मुसलमान, यहां तक कि इंडोनेशिया और मलेशिया का मुसलमान भी आ कर यह दावा कर सकता है कि इसमें मेरा भी हिस्सा है.’

सुल्तान अब्दुल हमीद द्वितीय के लिए मुस्लिम जगत को एकजुट करना न केवल आध्यात्मिक ज़रुरत थी, बल्कि इसके व्यावहारिक लाभ भी थे. रेलवे के निर्माण से पहले पिछले कुछ दशकों के दौरान, प्रतिद्वंद्वी साम्राज्य उस्मानिया सल्तनत से काफ़ी दूर हो चुके थे.

फ़्रांस ने ट्यूनीशिया पर क़ब्ज़ा कर लिया था, अंग्रेज़ों ने मिस्र, रोमानिया, सर्बिया पर हमला किया और मोंटेनेग्रो ने स्वतंत्रता प्राप्त की.

उस्मानिया सल्तनत के लोगों को एकजुट करके सुल्तान अब्दुल हमीद द्वितीय न केवल मुसलमानों को बल्कि अपनी सल्तनत को भी एकजुट करना चाहते थे, लेकिन ऐसा नहीं हो सका.

साल 1908 में, पहली ट्रेन दमिश्क से मदीना तक चली, और अगले ही साल सुल्तान का तख़्ता पलट कर दिया गया.

आज उस्मानिया सल्तनत बीते दिनों की बात हो गई है. इसी तरह, वो सीमाएं जो कभी इस मार्ग का केंद्र थीं, अब पांच देशों (तुर्की, सीरिया, जॉर्डन, इसरायल और सऊदी अरब) में विभाजित हो चुकी हैं.

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साल 1914 तक हर साल 3 लाख यात्रियों को यात्रा की सुविधा प्रदान करने के बावजूद, हिजाज़ रेलवे का महत्त्व केवल एक दशक तक ही रहा.

जब प्रथम विश्व युद्ध में तुर्की सेना ने इसका इस्तेमाल करना शुरू किया, तो ब्रिटिश अधिकारी टीई लॉरेंस (जिन्हें ‘लॉरेंस ऑफ़ अरबिया’ की उपाधि दी गई थी) और अन्य अरब विद्रोही सैनिकों ने इस पर हमला किया.

युद्ध के बाद, जब अंग्रेज़ों और फ़्रांसीसियों ने पूर्वी भूमध्य सागर में लेवेंट के क्षेत्र को बहाल किया, तो मुसलमानों को एकजुट करने वाली इस रेलवे लाइन को बनाए रखना और बहाल करना उनकी पहली प्राथमिकता थी, क्योंकि उस समय तक इस रेलवे लाइन का ज़्यादातर हिस्सा ख़राब हो चुका था.

आज, भाप के ‘रंगीन लेकिन ख़ामोश’ इंजन अम्मान के मुख्य रेलवे स्टेशन पर बेकार खड़े हैं.

यहां के संग्रहालय में इस रेलवे से संबंधित विभिन्न वस्तुएं हैं जैसे पुराने टिकट, चित्र और लालटेन. 20वीं सदी की शुरुआत में बहाल की गई एक बोगी, शानदार मखमली कुर्सियां और सुनहरे लैंप आज भी उस दौर की समृद्धि का अहसास दिलाती हैं.

स्कॉलर शेख़ अली अतंतवी ने इस रेलवे लाइन के बंद होने के बाद लिखा था, कि ‘हिजाज़ रेलवे की कहानी एक वास्तविक त्रासदी है. एक लाइन मौजूद है लेकिन कोई ट्रेन नहीं चलती… स्टेशन मौजूद हैं लेकिन कोई मुसाफ़िर नहीं.’

लेकिन यह केवल ख़त्म होती उम्मीदों और गलतियों की ही कहानी नहीं है. बीते कई वर्षों में, इसके कुछ हिस्सों को दोबारा बहाल किया गया है.

इसराइल ने साल 2016 में हाइफ़ा से बेत श्यान तक इस रेलवे लाइन के दोबारा निर्मित किये गए हिस्से को सक्रिय किया है.

साल 2011 में ये रेलवे लाइन अम्मान से दमिश्क तक चली भी थी और ये इतनी लोकप्रिय हो गई कि कई स्थानीय लोगों ने हैरानी से बताया कि कैसे उन्होंने ‘वीक एंड’ पर सीरिया की यात्रा का आनंद लिया था.

जॉर्डन में, अभी भी इस रेलवे लाइन के दो हिस्सों तक लोगों की पहुंच है.

यहां केवल गर्मियों में चलने वाला भाप का इंजन है जो मुख्य रूप से पर्यटकों के लिए है और यह रोम घाटी के रेगिस्तान से होकर गुज़रती है: वही लाइन जिस पर एक बार लॉरेंस ऑफ़ अरबिया ने हमला किया था.

इसके अलावा यहां एक साप्ताहिक ट्रेन भी है जो पूरे वर्ष अम्मान से अल-जज़ाह स्टेशन तक चलती है और ज़्यादातर स्थानीय लोग इसका उपयोग मनोरंजन के लिए करते हैं.

एक शनिवार की सुबह अम्मान के हिजाज़ रेलवे स्टेशन पर कई परिवारों की भीड़ थी. सिर पर गहरे और चमकीले रंग का स्कार्फ़ पहने महिलाएं खाने के सामान के कई बैग लिए हुए थीं. बच्चे फ़ुटबॉल और खिलौने लिए हुए थे.

हम अम्मान से अल-जज़ाह के लिए ट्रेन ले रहे थे: इस 35 किमी की यात्रा के दौरान, ट्रेन को संकीर्ण मार्गों से गुज़रते हुए अपनी स्पीड 15 किमी प्रति घंटे रखनी होती है, और मंज़िल तक पहुंचने में दो घंटे लगते हैं, यानी 35 किलोमीटर की यात्रा दो घंटे में पूरी होती है.

लेकिन असली मज़ा तो इस रोमांचक सफ़र में है. जैसे ही ट्रेन स्टेशन से बाहर निकली, बच्चों ने ख़ुशी से चीख़ना और शोर मचाना शुरू कर दिया. वे एक-दूसरे की बोगियों में इकट्ठा होते और ट्रेन की रेलिंग पर लटकते.

Amanda Ruggeri

कुछ जगहों पर यह ऐतिहासिक ट्रैक आधुनिक सड़क के साथ-साथ चलता है, जैसे कि एक चौराहे पर हम पार्किंग में खड़ी गाड़ियों और फलों और मुर्गों के डब्बों से लदे हुए एक पिक-अप ट्रक के बराबर से गुज़रे थे.

एक बूढ़े आदमी और उसके पोते ने दीवार के एक छेद से हमें देखा. छोटे बच्चे प्लास्टिक के कप फेंकते हुए ट्रेन की ओर भागे. एक बच्ची ने शोर सुनकर अपने कानों पर हाथ रख लिए.

लेकिन इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा: ट्रेन में सवार बच्चे उत्साहित थे. ज़्यादातर अम्मान के रहने वाले थे जो अपने शहर को एक अलग तरीक़े से देखने के लिए उत्साहित थे, और सीरियाई शरणार्थियों का भी एक छोटा सा ग्रुप था, जो सभी को मुस्कुरा कर देख रहा था.

हिजाज़ रेलवे उन सभी के लिए एक ‘एडवेंचर’ था.

ट्रेन की बोगियों में पार्टी का माहौल था. महिलाओं ने अपने साथ लाए हुए स्पीकर पर तेज़ आवाज़ में संगीत बजा रखा था. जब मैं एक बोगी के पास से गुज़री, तो कुछ महिलाएं ख़ुशी से नाच रही थीं, और मुझे देख कर, वे थोड़ा शर्मां गईं और हंसने लगी.

दो घंटे बाद जब अल-जज़ाह स्टेशन पहुंचे, तो सभी ने अपना-अपना रास्ता लिया और जैतून के पेड़ों की छाया में लगी मेज़ों की ओर जाने लगे. चाय के जग और स्थानीय भोजन बाहर निकाले गए.

स्टेशन के पीछे कुछ लड़के हुक्का पीने लगे, जो वो अपने साथ लाए थे.

मनोरंजन, पर्यटन, मौज-मस्ती: आजकल इस ट्रैक का इस्तेमाल ज़्यादातर इसी काम के लिए किया जाता है लेकिन अभी भी उम्मीदे हैं कि हिजाज़ रेलवे का महत्व अपने बुलंदी के दिनों से भी ज़्यादा बढ़ सकता है.

नालशिक का कहना है कि सबसे पहले इसमें व्यावहारिक क्षमता है: हर दिन 6 लाख लोग ज़रक़ा से अम्मान तक 30 किलोमीटर की यात्रा करते हैं लेकिन वहां पब्लिक ट्रांसपोर्ट बहुत कम है.

इस बारे में शोध किया जा रहा है कि क्या दोनों शहरों के बीच हिजाज़ रेलवे की बहाली यातायात को आसान बनाने में मदद कर सकती है.

नालशिक कहते हैं, कि ‘एक मक़सद लोगों को हिजाज़ रेलवे के इतिहास से परिचित कराना भी है. बहुत सारे लोग यहां से गुज़रते हैं लेकिन यह नहीं जानते कि यहां कोई ऐसा स्टेशन है जो पिछले 110 सालों से सक्रिय है. मैं कोशिश कर रहा हूँ कि इसे जॉर्डन के पर्यटन मानचित्र में शामिल किया जाये.

एक दूसरा मक़सद इस रेलवे को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल करना है.

सऊदी अरब ने साल 2015 में इस पर विचार करने के लिए प्रस्ताव प्रस्तुत किया था. (हालांकि जॉर्डन की तरह सऊदी अरब ने वास्तविक परिवहन के लिए इस लाइन को बहाल नहीं किया है, लेकिन इस रेलवे ट्रैक के बारे में इसका एक छोटा सा संग्रहालय है और वह रेलवे को भी अपनी विरासत का हिस्सा मानता है).

ऐसे समय की कल्पना करना कठिन लगता है जब ट्रेन सीरिया से यात्रियों को इस रेलवे ट्रैक के माध्यम से दोबारा सऊदी अरब ले जाएगी, लेकिन जब तक हिजाज़ रेलवे की विरासत को ज़िंदा रखा और पहचाना जाता रहेगा, तब तक इसके बहाल होने की आशा और संभावना बनी रहेगी.

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